Mrei Kuchh Dukh Bhari Shayeriyan

जाने कब एक ग़म ज़िंदगी भर कि खुशियाँ भुला गया !
यूँ तो हर गम जीने का वादा किया था खुदा से !
पर जाने कब ग़म हमको जीना भुला गया !!

चाहे लाख मजबूत हो रिश्तों कि डोर !
चाहे बिन उनके जीना बेमानी लगता हो !
पर ज़िंदगी बड़ी खुदगर्ज़ हे यारों !
मर कर भी जीने को मज़बूर करती हे !!

Ashok Sharma

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