My Poem: Andhkaar he Andhkaar he

अँधकार हे, अँधकार हे चारों तरफ अँधकार हे!
बन सूरज की मैं किरण गिरूँ, ऐ ख़ुदा बता मैं क्या करूँ! अँधकार हे…
क्या हाल हे बेहाल हे, ये धरा बनी अँगार हे!
बन कर शीतल बौछार गिरूँ, ऐ ख़ुदा बता मैं क्या करूँ! अँधकार हे…
उड़ जायेगा, मिट जायेगा, ये बृक्ष नहीं टिक पायेगा!
दुराचार की आँधी में, मैं कैसे इसकी ढ़ाल बनूँ!
ऐ ख़ुदा बता मैं क्या करूँ, ऐ ख़ुदा बता मैं क्या करूँ!
अँधकार हे, अँधकार हे चारों तरफ अँधकार हे! अँधकार हे, अँधकार हे…

Ashok Sharma

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